Sunday, June 21, 2015

तुम मुझमें जिंदा हो ...

श्री नन्दन मिश्रा
( 28/07/1936 - जब तक मैं हूँ )
पिता
तुम्हारी क्रब पर मैं फातिया पढ़ने नहीं आया,
मुझे मालूम था, तुम मर नहीं सकते,
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर, जिसने उड़ाई थी
वह झूठा था, वह झूठा था।
वह तुम कब थे,
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था।
मेरी आखें मंजरों में कैद है अब तक,
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ वह वही हैं,
जो तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी,
कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी अंगुलियों में सांस लेते हैं।
मैं लिखने के लिये जब कलम कागज उठाता हू
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी पे पाता हूँ
बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वह तुम्हारी लग़जिषों-ऩाकामियों के साथ बहता हैं।
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जहन रहता हैं।
मेरी बीमारियों में तुम, मेरी लाचारियों में तुम।
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा था,
वह झूठा था, वह झूठा था,
तुम्हारी क्रब में मैं दफन हूँ, तुम मुझमें जिंदा हो।
कभी फुरसत मिले तो फातिया पढ़ने चले आना।
-निदा फाज़ली

8 comments:

shikha varshney said...

तुम्हारी क्रब में मैं दफन हूँ, तुम मुझमें जिंदा हो।
सच ....

सुशील कुमार जोशी said...

पितृ दिवस पर सलाम !

HARSHVARDHAN said...

बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि। सही कहा आपने 'जब तक में हूँ', तब तक बाबूजी आप मे जिंदा रहेंगे। सादर।।

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन के पितृ दिवस विशेषांक, क्यों न रोज़ हो पितृ दिवस - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Sadhana Vaid said...

बहुत ही खूबसूरत अहसास और अलफ़ाज़ ! पितृ दिवस पर इससे बेहतर तरीके से याद नहीं किया जा सकता अपने पिता को ! सादर नमन !

Himkar Shyam said...

उर्दू के महान शायर निदा फाज़ली की बेहद खूबसूरत रचना पढवाने के लिए आभार... पितृ दिवस पर सुंदर प्रस्तुति, पिता को नमन !

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

yahi soch insan ko tutne nahi deti .........

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ये नज़्म मेरे दिल के बहुत करीब है.. पिताजी की स्मृति को नमन!!

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