आज आप सब को मैं अपने एक और पसंदीदा शायर जावेद अख़्तर साहब के एक शेर से रूबरू करवाता हूँ !
" फिरते हैं कब से दर-बदर अब इस नगर अब उस नगर
इक दूसरे के हमसफ़र मैं और मिरी आवारगी "
इक दूसरे के हमसफ़र मैं और मिरी आवारगी "
मेरा यह ब्लॉग समर्पित है उन शायरों को जिन को मैं पढ़ता आया हूँ और जिन के अश्आर मुझे सुकून देते है ! उन सब शायरों को मेरा सलाम !
4 comments:
क्या बात है
धन्यवाद शिवम जी
बहुत मज़ा आ रहा है शिवम् यहाँ . एक से बढ़ के एक शेर निकाल रहे हो अपने खजाने से..बधाई.
शुक्रिया :)
बहुत ही बढ़िया पढ़ कर आनंद आ गया | क्या शेर कहा है - लाजवाब
तमाशा-ए-ज़िन्दगी
Post a Comment